भगवान सूर्य का मन्त्र ही गायत्री मन्त्र है ।
सूर्य मन्त्र जो 24 अक्षर का होने के कारण जिसे गायत्री छंद कहते दुनिया का सर्वश्रेष्ठ मंत्र है और जिसको सर्वश्रेष्ठ क्षत्रिय ब्रह्मऋषि विश्वामित्र
ने स्वयं रचकर सिद्ध किया था । इसका गायत्री माता या गायत्री की स्तुति से कोई लेना देना नही है !!
इस सूर्य मंत्र गायत्री मंत्र का शुद्ध अर्थ यह है--
1.ॐ =अउम् अर्थात प्रणव ,मूल सत्ता (अंकुरण,उत्थान और मरण(संहार) की सत्ता) ब्रह्म । यह बीज मन्त्र है जिस भी मन्त्र के आगे लगता है उसकी शक्ति को बढाता है ।
2.भू:=भू लोक जिसमे मनुष्य सहित अधिकांश जीव रहते है ।
3.भुवः=भुवर्लोक ,भूमि से करीब 1 गज ऊपर से लेकर अंतरिक्ष की 14 वीं परत तक परिक्षेत्र जिसमे ऋषि मुनि, संत, सति, शूरमा, भोमिया आदि श्रेष्ट लोग तप करते रहते हैं । भूत और प्रेतात्मा भी इसी में रहते हैं ।
4.स्व:=स्वर्गलोक
5.तत्=उस
6.सवितु:=मूल स्रोत्र(सूर्य)
7.वरेण्यं=वरण करता हूँ
8.भर्गो= श्रेष्ट
9.देवस्य=देवताओं में
10.धीमहि= ध्यान करता हूँ
11.धी =बुद्धि
12.यो=जो
13.न:=हमारी
14.प्रचोदयात्=सन्मार्ग पर प्रेरित करें ।
अर्थात साधक ॐ भूलोक, भुवर्लोक और स्वर्ग में रहने वाले श्रेष्ट प्राणीयों का वरण करता है अपनी साधना में सहयोग के लिए तथा प्रार्थना करता है कि उस देवताओं में श्रेष्ट सूर्यदेव (यह दिखाई देने वाले सूर्य नही बल्कि जो 49 वीं परत पर है जिनके प्रकाश से ये सूर्य भगवान भी ऊर्जावान है ।) का ध्यान करता हूँ जो हमारी बुद्धि को सन्मार्ग की और प्रेरित करें ।
सूर्य मन्त्र जो 24 अक्षर का होने के कारण जिसे गायत्री छंद कहते दुनिया का सर्वश्रेष्ठ मंत्र है और जिसको सर्वश्रेष्ठ क्षत्रिय ब्रह्मऋषि विश्वामित्र
ने स्वयं रचकर सिद्ध किया था । इसका गायत्री माता या गायत्री की स्तुति से कोई लेना देना नही है !!
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1.ॐ =अउम् अर्थात प्रणव ,मूल सत्ता (अंकुरण,उत्थान और मरण(संहार) की सत्ता) ब्रह्म । यह बीज मन्त्र है जिस भी मन्त्र के आगे लगता है उसकी शक्ति को बढाता है ।
2.भू:=भू लोक जिसमे मनुष्य सहित अधिकांश जीव रहते है ।
3.भुवः=भुवर्लोक ,भूमि से करीब 1 गज ऊपर से लेकर अंतरिक्ष की 14 वीं परत तक परिक्षेत्र जिसमे ऋषि मुनि, संत, सति, शूरमा, भोमिया आदि श्रेष्ट लोग तप करते रहते हैं । भूत और प्रेतात्मा भी इसी में रहते हैं ।
4.स्व:=स्वर्गलोक
5.तत्=उस
6.सवितु:=मूल स्रोत्र(सूर्य)
7.वरेण्यं=वरण करता हूँ
8.भर्गो= श्रेष्ट
9.देवस्य=देवताओं में
10.धीमहि= ध्यान करता हूँ
11.धी =बुद्धि
12.यो=जो
13.न:=हमारी
14.प्रचोदयात्=सन्मार्ग पर प्रेरित करें ।
अर्थात साधक ॐ भूलोक, भुवर्लोक और स्वर्ग में रहने वाले श्रेष्ट प्राणीयों का वरण करता है अपनी साधना में सहयोग के लिए तथा प्रार्थना करता है कि उस देवताओं में श्रेष्ट सूर्यदेव (यह दिखाई देने वाले सूर्य नही बल्कि जो 49 वीं परत पर है जिनके प्रकाश से ये सूर्य भगवान भी ऊर्जावान है ।) का ध्यान करता हूँ जो हमारी बुद्धि को सन्मार्ग की और प्रेरित करें ।
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