Tuesday 16 May 2017

स्वास्थ्य के लिये मोबाईल खतरनाक

रेडिएशन प्रभाव से के उपाय

सर्दी गर्मी वर्षा से बच जाओगे लेकिन रेडिएशन से होने वाले नुकसान से कैसे बच पाओगे ???
जानिये
मोबाइल रेडिएशन है कितना खतरनाक!

इन दिनों अगर कोई किसी का सच्चा साथी है, जो हर समय साथ रहता है तो वह है आपका मोबाइल फोन। जी हां, इसके बिना जिंदगी की कल्पना करना शायद मुश्किल ही होगी। लोग फोन को ऐसे चिपका के अपने साथ रखते हैं जैसे कोई खजाना हो। लोग इस बात से अनजान है कि फोन को यूं अपने साथ हमेशा चिपका के रखना किसी बड़े खतरे को बुलावा देना है।
क्या आप जानते हैं मोबाइल फोन और मोबाइल टावर से निकलने वाला रेडिएशन सेहत के लिए खतरा भी साबित हो सकता है, वहीं कुछ सावधानियां अगर बरती जाएं तो मोबाइल रेडिएशन से होने वाले खतरों से काफी हद तक बचा जा सकता है।

क्या है रेडिएशन के साइड एफेक्ट्स
हमेशा रहेगी सिरदर्द की शिकायत
सिर में होगी झनझनाहट
लगातार थकान महसूस करना
चक्कर आना
डिप्रेशन में रहना
नींद न आना व आंखों में ड्राइनेस रहना
काम में बिल्कुल भी ध्यान न लगना
कानों का बजना और सुनने की क्षमता धीरे-धीरे कम होना
याददाश्त कमजोर होना
पाचन में गड़बड़ी रहना

बता दें कि मोबाइल रेडिएशन से लंबे समय के बाद प्रजनन क्षमता में कमी, कैंसर, ब्रेन ट्यूमर और मिस-कैरेज की आशंका भी हो सकती है। यह हम सभी जानते हैं कि हमारे शरीर में 70 फीसदी और दिमाग में 90 फीसदी तक पानी होता है। यह पानी धीरे-धीरे बॉडी रेडिएशन को अब्जॉर्ब करता है जो आगे जाकर सेहत के लिए काफी नुकसानदेह साबित होता है। आपको बता दें कि मोबाइल का ज्यादा इस्तेमाल करने से कैंसर जैसी बड़ी और गंभीर बीमारी भी आपको हो सकती है। एक रिपोर्ट के मुताबिक हर दिन आधे घंटे या उससे ज्यादा मोबाइल का इस्तेमाल करने पर 8-10 साल में ब्रेन ट्यूमर की आशंका 200-400 फीसदी बढ़ जाती है।

मोबाइल फोन का रेडिएशन कब है ज्यादा घातक यहां जानें

मोबाइल तकिए के नीचे रखकर सोना सही नहीं है
जेब में मोबाइल रखना दिल के लिए नुकसानदेह है,
पेसमेकर लगा है तो मोबाइल ज्यादा नुकसान करता है।

घबराइये नहीं रेडिएशन से सुरक्षा का उपाय आ चुका है जो 100% सुरक्षित है और आपका बचाव करता है इसका फ्री डेमो उपलब्ध है ज्यादा जानकारी और डेमो के लिए आज अभी संपर्क करे।
जॉब नौकरी करने के लिए भी संपर्क कर सकते है।

मोबाईल रेड़ीयेसन से बचिये एनवायरोचिप वितरक डिस्ट्रिब्यूटर डीलर बनिये और स्वास्थ्य के साथ शानदार कमाई कीजिये, फ्री डेमो मोबाईल।
भंवर जूसरी
मो.9251615727

Thursday 7 April 2016

फैक और पैड विज्ञापन

आप जानते हैं फैक (झूटे) और पैड (रूपये लेकर) किये गए विज्ञापनो के बारे में ???
यह फैक और पैड दोनो प्रकार के विज्ञापन टीवी, रेडियो, अख़बार और अन्य संशाधनो द्वारा सारे सारे दिन हमे दिखाए और सुनाये जाते हैं जो एक  सतत क्रमबद्ध तरीके से हमें दिखाकर मोहित कर रहे होते है !!
फैक विज्ञापन में वह उत्पाद के बारे में इतना झूठ बोलते है उनकी दुष्टता को देखते सुनते ही हँसी सी आने लग जाती है
व दुसरे पैड़ विज्ञापन में रूपए लेकर उसके बाद में उनके लिये उलटे सुलटे तरीके से नाच कुद्कर हमारे समक्ष यह बताने की झूटी चेष्टा की जाती की वह उत्पाद ऐसा है और उसके काम में लेने से ऐसा हो गया है, हो जाता है उअ  हो जायेगा !
इनमे ज्यादातर अभिनेता,  क्रिकेटर या और कोई बड़ी हस्ती उस उत्पाद को काम  में ही नहीं ले रही होती है और उसके बारे में झुटा ढोंग या दिखावा करता करते है की जैसे वह उसे काम में ही ले रहा है ! दरअसल वह विज्ञापन उसे उसके ज्यादा फैन्स होने के कारन रुपयों के बल पर मिला होता है इस प्रकार के विज्ञापन पैड विज्ञापन कहलाते हैं
जैसे शाहरुख खान कभी सेंट्रो कार नहीं चलाता वह उसके लिए झूठा विज्ञापन कर रहा होता है !
जूही चावला शायद ही कभी अपने बालों में अमुक ब्रांड का आवला या नारियल का तेल लगाती होगी !
शायद पूरी जिन्दगी में भी कभी अमिताभ बच्चन ने नवरत्न तेल लगाया होगा !
ऐश्वर्या या कैटरीना लक्स साबुन से नहाई होगी !
जोश या डर का कभी सम्बन्ध कोक पेप्सी ड़यु आदि से रहा हो !
और आजकल एक ऐसी कंपनी ने टीवी और अखबार में विज्ञापन देने की हद कर दी है की उसके पास हर एक उत्पाद घी आटा आदि सब कुछ शुद्धता के साथ उपलब्ध है और वह भी हर सेकंड विज्ञापन के भारी भरकम खर्चे के बाद !
आप ही सोचे भला यह संभव हो सकने बात है क्या ?
जिस वस्तु (दूध) का इतना उत्पादन ही नहीं हो पा रहा उसकी प्रचुर (घी) की उपलब्धता क्या संभव है ??
इन सब प्रकार के विज्ञापन को फेंक और पैड विज्ञापन कहते हैं।
किसी भी उत्पाद के विज्ञापनों के बारे में आप खुद सोचिए समझिए एवं पढ़िये और फिर इनको जाँचकर काम में लेना शुरु कीजिए यह झूटे विज्ञापन वाले आपको कभी भी, किसी भी प्रोडक्ट की संपूर्ण जानकारी नहीं दें सकेगे या उस उत्पाद के ऊपर कभी भी साफ़ शब्दों में यह लिखेंगे की उसमे क्या कंटेंट मिलाया गया है या उसका ग्रेड क्या है ?
इन सबको जाँचे, सही तरीके से देखे, जाने समझे  और फिर काम में लेना शुरु कीजिए।
सबसे ख़ास आज ही उन उत्पादों को घर में काम में लेना बंद कर दीजिये जिनके सबसे ज्यादा विज्ञापन आते है, इन सबके लिये हम आपको पक्की गारंटी देते है की उनमे तो किसी प्रकार का गुणवत्ता का स्तर नहीं रखा गया होगा !
या हो सके तो अपने घर जिन कंपनियों के डायरेक्ट मार्केटिंग उत्पाद है जो कंपनियां सीधे आपके घरों तक सामान जागरूकता देने के साथ डायरेक्ट सेलिंग दे रही है उन कंपनीयो के उत्पाद ही काम में लेना शुरु कीजिए ताकि आपका रुपया पैसा आपके पास में बच सकें।
इससे झूटे और पैड विज्ञापन करने वालों के पास आपका कीमती पैसा नहीं जाएग इससे आपको कई गुना तक लाभ प्राप्त होगा आपके पैसे (cash discount) से बचेगे और आपको रुपए वापस(cash back) भी मिल सकता है।
यदि यह आपके काम का नहीं है तो कृपया इसे अन्य को भेज कर उसको लाभान्वित करे।
और ज्यादा जानकारी के लिए Whatsapp 9251615727 करे।

Friday 7 August 2015

वालतैयर से आगे भंवर सिंह राठौड

मेरा कहना आप सब से -
हो सकता है कि मैं आपके विचारो से सहमत नहीं हो पाऊ, पर आपके विचार प्रकट करने की स्वतंत्रता की रक्षा ही नहीं करूंगा बल्कि उसके लिए आपका सहयोग भी करूँगा और रही बात मेरे विचारो की तो में भी विचार देने, रखने और फ़ैलाने के लिए स्वतंत्र हु ही, हो सकता है कि आप मैरे विचारो से सहमत ना हो पाए, पर आपके सहयोग करने की भावना का भी जरुर सम्मान करूँगा और इसमें किसी भी प्रकार की अड़चन होगी तो उसको भी निकाल दूर फैकुंगा ll 

भंवर सिंह राठौड जूसरी श्री मान वालतैयर से आगे चलने की कोशिश करते हुए l


Tuesday 4 August 2015

साधू शैतान समाज !!!

भारत ऋषि-मुनियों, साधु-संतों का देश है। इस देश में संत समाज ने हमेशा बहुत बड़ी भूमिका निभाई है। संतों ने ही मानव समाज को ईश्वरीय ज्ञान से जोड़ा, संस्कारों से जोड़ा, जीवन जीने की कला से जोड़ा, विकास की तमाम क्रियाओं प्रक्रियाओं से जोड़ा और सब कुछ इतना अच्छा किया कि पूरा संसार उनकी ओर देखता था। लोगों की अपेक्षाओं पर खरा उतरने के लिए संत का बड़ा ही अच्छा और वैसा ही स्वरूप होना चाहिए जैसा ईश्वर के किसी प्रतिनिधि का होता है। नि:संदेह संत का उद्देश्य सम्पूर्ण संसार होना चाहिए।
सभी लोगों को आनंद मिल जाए, सभी लोग सुखी हों, यदि कोई ऐसा चाहता है और उसके लिए प्रयास करता है तो वैदिक सनातन धर्म में उसे संत कहा गया है। केवल सनातन धर्म में ही नहीं, दूसरी परम्पराओं में भी महान संत हुए हैं। मुस्लिमों में भी एक धारा सूफियों की रही है, जिन्होंने अपना जीवन समाज के हित में बिता दिया।
इस संसार में घर-परिवार, नातेदार, सुख, सम्पत्ति, वैभव सभी कुछ मिलना सहज है, लेकिन दुर्लभ संत समागम यानी संत मिलना कठिन है। आज साधू के वेष में रोज शैतान सामने आ रहे हैं !!!
किसी कवि ने ठीक ही लिखा है—
''रामचन्द्र कह गए सिया से ऐसा कलियुग आएगा l
योग्यजन तो दुखी रहेंगे, मूर्ख मौज उड़ाएगा !!
अभिमानी, आडम्बर, पाखंड वाला संत यहां कहलाएगा !!
डींग हाकने वाला भाई यहां पंडित कहलवाएगा
भक्ष्य-अभक्ष्य को जो जाने नहि वो जन पूजा जाएगा
उल्टी-सीधी बात कहे वही 'बाबा' कहलायेगा'  !!! "
संतों के कारनामे देख सुनकर पांवों तले की जमीन खिसक जाती है।
कुछ ही दिन पहले यह खुलासा हुआ था कि राजस्थान में नैतिक शिक्षा की किताब में शिष्यों के यौन शोषण के आरोपी आसाराम को महान संत बताया गया है और अन्य महापुरुषों के साथ उसका चित्र भी प्रकाशित किया गया !!!
क्या ऐसी पुस्तके बच्चों को नैतिक शिक्षा दे सकेगी ???
अब त्रिवेणी के पावन संगम में संत समाज ने जिस शख्स को संत परम्परा के सर्वोच्च स्थान महामंडलेश्वर की पदवी दी वह सचिन दत्ता, डिस्को, बीयर बार और रियल एस्टेट के धंधे को सम्भालता रहा है। उनकी रियल एस्टेट कम्पनी के कई प्रोजैक्ट चल रहे हैं। सचिन दत्ता पिछले 20-22 वर्षों से अग्रि अखाड़ा से जुड़ा हुआ था। 13 अगस्त, 2014 को नोएडा में हुए हमले के दौरान एक गोली सचिन दत्ता को भी लगी थी। जब मामला मीडिया में उछला तो संत समाज से जुड़े लोग यही तर्क देते रहे कि 'सुबह का भूला शाम को घर आ जाए तो उसे भूला नहीं कहते।' सचिन दत्ता को महामंडलेश्वर बनाने वाले न जाने कितने उदाहरण देते रहे और शब्द जाल गढ़ते रहे।
 'राधे मां' की कहानियां भी चर्चित हो रही हैं, जो खुद को देवी मां का अवतार बताती है !!! इस देश में एक साधारण महिला का 'राधे मां' बनना आश्चर्यजनक नहीं है और न ही सचिन दत्ता का संत बनना कोई आश्चर्यजनक है !!!
सवाल यह उठता है कि एक व्यापारी का संत बनना क्या वास्तव में हृदय परिवर्तन है या आडम्बर !!! यह मुझे महर्षि वाल्मीकि या अंगुलीमाल जैसा मामला तो लगता नहीं। हो सकता है कि सचिन दत्ता का संत बनना व्यापार से भी कहीं अधिक 'बड़ा व्यापार' हो ???
इंसानों को देवता या ईश्वर मानने की परम्परा बहुत पुरानी है ! शायद इस धारणा के तहत ही अवतारवाद के सिद्धांत ने जन्म लिया था, यानी ईश्वर स्वयं मानव रूप धरकर पृथ्वी पर आता है। प्राचीन मानव जिससे डरता था या जिससे लाभान्वित होता था, उसे ही अपना देवता या गुरु मान लेता था। आज के दौर में मनुष्य भौतिकवाद के कारणों से अत्यंत दु:खी और हताश है, किसी का व्यापार चौपट है, कोई बीमारी से परेशान है, कोई कर्ज के बोझ से दबा हुआ है। मनुष्य धर्म में आस्था रखकर किसी की चौखट पर जाता है तो उसे लगता है कि उसे कुछ लाभ होगा, वहीं अपना शीश झुका देता है !!
लोगों की श्रद्धा और आस्था के साथ जिस तरह ढोंगी बाबा खिलवाड़ कर रहे हैं, उसके पीछे भी यही मनोविज्ञान काम कर रहा है। लोग समझ ही नहीं पा रहे कि उनका गुरु गुरु नहीं बल्कि उनके परिवार की इज्जत पर हमला करने वाला राक्षस रूपी मानव है  !! ढोंगी बाबाओं के सैक्स रैकेट तो सामने आते ही रहे हैं !! कोई इच्छाधारी बनकर 'अपनी इच्छाओं' की पूर्ति करता है तो कोई किसी अभिनेत्री के साथ पकड़ा जाता है !! अंध भक्ति में लोग फिर भी इनके पीछे लगे रहते हैं।
अब अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने संत समाज को आपराधिक तत्वों से मुक्ति दिलाने के लिए सचिन दत्ता और राधे मां के नासिक कुम्भ में भाग लेने पर पाबंदी लगा दी है। अखाड़ा परिषद ने कहा है कि जब तक दोनों आपराधिक मामलों में निर्दोष साबित नहीं होते तब तक उन्हें संत नहीं माना जाएगा !! एक संत को महंगी गाडिय़ों, लाखों के आभूषणों, भव्य महलों की क्या जरूरत है !! कई बाबाओं के विदेशों में भी भव्य आश्रम हैं ! संत समाज को भी चाहिए कि वह अपने भीतर आपराधिक तत्वों की पहचान करे।
हमने देवरहा बाबा को अपने भक्तों को लात मार कर आशीर्वाद देते देखा लेकिन वह मचान पर रहते थे, किसी आलीशान भवन में नहीं। बाबा बनकर बेशुमार दौलत जोडऩा, जनता से छल करना, स्वयं को आलौकिक शक्तियों से लैस बताकर खुद महान बनने का उपक्रम करना अपराध ही है !!
जनता सच को पहचाने और अपने कर्म पर विश्वास करे। तथाकथित महामंडलेश्वरों की महिमा से लोगो को हमेशा सतर्क रहने की जरुरत है l

Sunday 12 July 2015

जातिगत जनगणना का ‪‎रहस्य‬

जातिगत जनगणना का ‪#‎रहस्य‬ !!!
वाकई गजब का विविधता वाला देश है ‪#‎भारत‬ वर्ष जिसमे कि 46 लाख जातियां, उपजातियां, गोत्र केवल सनातन में ही हैं। जातिगत जनगणना में इस तथ्य के बाहर आने के बाद जो रहस्य उजागर हुआ है वह भारत की उस केन्द्रीय शक्ति को प्रतिबिम्बित करता है जिसे ‪#‎सनातन‬ कहते हैं।

 पूरी दुनिया में कोई ऐसा दूसरा समुदाय नहीं है जो इस कदर विभाजित होने के बाद एक सूत्र में बन्धा हुआ हो। निश्चित रूप से इन बिखरे हुए और विभाजित लोगों को यदि कोई चीज एक धागे में पिरोये हुए है तो वह सनातन संस्कृति ही है और यही वजह है कि लोकतन्त्र का मूल सिद्धान्त 'मत और विचार विभिन्नता' इस देश की शिराओं में रक्त की तरह दौड़ता है। केन्द्र सरकार ने अभी ये जातिगत आंकड़े जारी नहीं किये हैं क्योंकि राज्य सरकारों को जनगणना में प्राप्त जातिगत समूहों को समुच्चबद्ध करना है और उन्हें वापस केन्द्र के पास भेजना है लेकिन यह सवाल उठ सकता है कि 21वीं सदी के भारत को इस प्रकार की जनगणना की क्या जरूरत थी ???

याद है कि 2011 में केन्द्र की मनमोहन सरकार के रहते कुछ क्षेत्रीय दलों खासकर बीजेपी, समाजवादी पार्टी, जनता दल (यू), राष्ट्रीय जनता दल आदि ने लोकसभा में तूफान खड़ा कर दिया था और सरकार से कहा था कि भारत में 1936 के बाद से जातिगत गणना नहीं हुई है जबकि 1990 में मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू होने के बाद से जातिगत पहचान जरूरी हो गई है क्योंकि पिछड़े वर्ग की पहचान जातियों के आधार पर ही होती है। 

इस मुद्दे पर इन दलों के सांसदों ने लोकसभा की कार्यवाही में कई बार व्यवधान भी पैदा किया था। गौर से देखा जाये तो जाति मूलक राजनीति के लिए यह जनगणना इन दलों के नेताओं ने जरूरी खुराक समझी थी मगर 46 लाख जातियों व उपजातियों और गोत्रों में इन्हीं दलों के नेताओं के दिमाग को घुमाने की क्षमता है !!! 
इसका मैं एक उदाहरण देता हूं। जब तथाकथित बिहारी वाजपेयी 1999 में 13 दिन और 13 महीने के बाद तीसरी बार प्रधानमन्त्री बने तो उन्हें ब्राह्मण समाज की तरफ से समारोह की अध्यक्षता करने का निमन्त्रण मिला। वाजपेयी ने उसे अस्वीकार कर दिया। 
संसद में ऐसे ही किसी मुद्दे पर चल रही बहस में भाग लेते हुए वाजपेयी ने इस घटना का जिक्र करते हुए कहा कि अगर कल को मुझे 'कान्यकुब्ज ब्राह्मण' समाज निमन्त्रित करता है तो मैं क्या करूंगा ??? वाजपेयी मूल रूप से कान्यकुब्ज ब्राह्मण ही हैं। इन कान्यकुब्ज ब्राह्मणों के बारे में एक कहावत प्रसिद्ध है कि 'नौ कन्नौजी-दस चूल्हे।' 
इसी प्रकार एक बार वर्तमान राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी को भी केन्द्र में वित्तमन्त्री रहते 'कान्यकुब्ज सभा' की ओर से निमन्त्रण पत्र मिला। आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि मुखर्जी भी मूल रूप से कान्यकुब्ज ब्राह्मण हैं। प. बंगाल के जितने भी पांच 'अर्जी' या उपाध्याय अर्थात मुखर्जी, चटर्जी, बनर्जी आदि ब्राह्मण हैं वे सभी कान्यकुब्ज हैं जो सदियों पहले कानपुर के आसपास के इलाके से उस समय बंगाल गये थे जब इस राज्य में मुस्लिम राज के चलते सनातनो के पूजा-पाठ आदि कार्यों के लिए ब्राह्मïण बचे ही नहीं थे। इनमें भी 'बिसवे' का अलग टंटा होता है। मुखर्जी ने भी ससम्मान निमन्त्रण को लौटा दिया। 
अब इस जाति जनगणना के रहस्य की घोषणा करने वाले वित्तमन्त्री अरुण जेटली को लीजिये। वह 'सारस्वत' ब्राह्मण हैं। सारस्वत पंजाब के विद्वजनों के सिरमौर माने जाते हैं और आर्यों के कुल पुरोहित होने का विशिष्ट दर्जा भी इनके पास है और महाराष्ट्र व गोवा इलाके में भी सारस्वत ब्राह्मïण हैं किन्तु इनके गोत्र अलग होते हैं। 
अब यादवों को लीजिये। बिहार औऱ उत्तर प्रदेश के यादव कई गोत्रों में बंटे हुए हैं मगर गुजरात के अहीरों से इनका मेल नहीं बैठता और दक्षिण भारत के यादव, जो 'नन्द गोपाल' कहलाये जाते हैं, स्वयं को सर्वश्रेष्ठ मानते हैं। 
इसी प्रकार क्षत्रियों में चन्द्रवंशी से लेकर सूर्यवंशी राजपूत और ठाकुरों के बीच सैकड़ों की संख्या में गोत्रादि विभिन्नताएं हैं। उत्तर और दक्षिण के इलाकों में इनकी अलग-अलग पहचान है मगर सबसे ज्यादा मजेदार मामला पंजाब के खत्रियों का है। इनमें सिख भी होते हैं और हिन्दू भी। 
पंजाबी भी होते हैं और यूपी वाले भी और दक्षिण भारत में ये 'एसएसके' अर्थात 'सूर्यवंशी सहस्त्रबाहु क्षत्रिय' कहलाये जाते हैं मगर इनके उपनाम पुजारी, राव आदि होते हैं। ये स्वयं को ब्राह्मण तुल्य समझते हैं और पंजाब से लेकर अन्य सभी प्रदेशों में सारस्वत ब्राह्मणों के साथ रोटी-बेटी का लेन-देन करते हैं। 
उत्तर-पूर्वी भारत तक में सारस्वत ब्राह्मण फैले हुए हैं जिनमें प्रमुख 'गोस्वामी' हैं। इसी प्रकार वैश्यों में जैन मतावलम्बियों से लेकर हिन्दुओं के बीच गोत्रों का जाल फैला हुआ है। 
दलितों में भी भेद पर भेद हैं जिसका उदाहरण बिहार है जहां दलित और महादलित का वर्गीकरण किया गया है। दक्षिण भारत विशेषकर तमिलनाडु की संस्कृति के जातिगत तार हमें सीधे रामायण काल से जोड़ते हैं और आचार्य चतुर सेन शास्त्री की पुस्तक 'वयं रक्षाम:' का तार्किकपूर्ण तरीके से अध्ययन करने को उकसाती है मगर हमें ध्यान रखना पड़ेगा कि लंकापति रावण ब्राह्मण था और 'पौलत्स्य' ऋषि का पौत्र था और 'सप्त द्वीप पति' अर्थात सात द्वीपों का अधिपति था। 
अत: भारत की जातिगत गणना से वोट बैंक को पक्का करने की राजनीति अंग्रेजों की 1936 में की गई जनगणना के आधार पर तो इस वजह से हो गई क्योंकि उसका लक्ष्य भारत को पूरी आजादी देने से पहले इसे जातियों के कबीले बना कर खंड-खंड करके बांटते हुए भारत की एकात्म शक्ति को भीतर से तोडऩा था। 
यह काम मोटे तौर पर उन्होंने भारत को धर्म के नाम पर तोड़कर कर भी किया मगर विश्वनाथ प्रताप सिंह ने आजाद भारत में अंग्रेजों के सपने को पूरा करने के बीज को पूरी तरह ख़त्म करने का बिज बोया l 
देखिये इस मुल्क की किस्मत कि राम मनोहर लोहिया जीवन पर्यन्त संघर्ष करते रहा और कहता रहा कि भारत में विकास और सामाजिक न्याय का रास्ता केवल और केवल 'जाति तोड़ो' के द्वार से ही होकर जायेगा मगर क्या कयामत है कि उन्हीं के तथाकथित चेले आज 'जाति बोलो' की अलख जगाने में सबसे आगे चल रहे और चलना चाहते हैं और अपनी अपनी जातियों को गर्व से‪#‎ओबीसी‬ बनाने पर तुले हुए है !!!

Sunday 28 June 2015

सूर्य मन्त्र गायत्री मन्त्र

भगवान सूर्य का मन्त्र ही गायत्री मन्त्र है ।
सूर्य मन्त्र जो 24 अक्षर का होने के कारण जिसे गायत्री छंद कहते  दुनिया का सर्वश्रेष्ठ मंत्र है और  जिसको सर्वश्रेष्ठ क्षत्रिय ब्रह्मऋषि विश्वामित्र 
ने स्वयं रचकर सिद्ध किया था । इसका गायत्री माता या गायत्री की स्तुति से कोई लेना देना नही है !!
इस सूर्य मंत्र गायत्री मंत्र का शुद्ध अर्थ यह है--
1.ॐ =अउम् अर्थात प्रणव ,मूल सत्ता (अंकुरण,उत्थान और मरण(संहार) की सत्ता) ब्रह्म । यह बीज मन्त्र है जिस भी मन्त्र के आगे लगता है उसकी शक्ति को बढाता है ।
2.भू:=भू लोक जिसमे मनुष्य सहित अधिकांश जीव रहते है ।
3.भुवः=भुवर्लोक ,भूमि से करीब 1 गज ऊपर से लेकर अंतरिक्ष की 14 वीं परत तक परिक्षेत्र जिसमे ऋषि मुनि, संत, सति, शूरमा, भोमिया आदि श्रेष्ट लोग तप करते रहते हैं । भूत और प्रेतात्मा भी इसी में रहते हैं ।
4.स्व:=स्वर्गलोक
5.तत्=उस
6.सवितु:=मूल स्रोत्र(सूर्य)
7.वरेण्यं=वरण करता हूँ
8.भर्गो= श्रेष्ट
9.देवस्य=देवताओं में
10.धीमहि= ध्यान करता हूँ
11.धी =बुद्धि
12.यो=जो
13.न:=हमारी
14.प्रचोदयात्=सन्मार्ग पर प्रेरित करें ।

अर्थात साधक ॐ भूलोक, भुवर्लोक और स्वर्ग में रहने वाले श्रेष्ट प्राणीयों का वरण करता है अपनी साधना में सहयोग के लिए तथा प्रार्थना करता है कि उस देवताओं में श्रेष्ट सूर्यदेव (यह दिखाई देने वाले सूर्य नही बल्कि जो 49 वीं परत पर है जिनके प्रकाश से ये सूर्य भगवान भी ऊर्जावान है ।) का ध्यान करता हूँ जो हमारी बुद्धि को सन्मार्ग की और प्रेरित करें ।








Sunday 31 May 2015

जाति प्रमाण पत्र

-मेरा जाति प्रमाण पत्र -
मुझे गर्व है की मैं आरक्षित वर्ग से नहीं आता हूँ । मुझे अत्यंत गर्व है की मैं एक सामान्य वर्ग से आता हूँ क्योंकि -
1. आज मैं जो कुछ भी हूँ अपनी योग्यता, बुद्धि कौशल के बलबूते हूँ न कि जाति प्रमाण पत्र के आधार पर ।
2. बचपन से लेकर युवावस्था तक मैंने स्वाभिमान से सर उठा कर दुनियाँ की हर परिस्थिति से अनुभव प्राप्त किया है । इसमें जाति प्रमाण पत्र का कोई योगदान नहीं रहा ।
3. मुझे गर्व है कि मेरी शिक्षा दीक्षा में मेरे अपने माता पिता के स्वाभिमान से कमाए हुए पैसों का योगदान है न कि किसी भीख का।
4. मुझे गर्व है कि आज मैंने स्कूल एवं कॉलेजों में जो भी एडमिशन लिये सभी मैंने अच्छे नंबरों और अपनी बौद्धिक कुशलता के बल पे लिया है । इसमें भी जाति प्रमाण पत्र का कोई योगदान नहीं ।
5. मुझे गर्व है कि मैंने अपनी शिक्षा में लगने वाली फीस को एक स्वाभिमानी व्यक्ति की तरह पूरा पूरा वहन किया है और किसी भी गरीब का हक़ नहीं मारा है । इसमें भी जाति प्रमाण पत्र का कोई योगदान नहीं है ।
6. आज मेरे अंदर जो भी निखार आया है सब का श्रेय मेरी कड़ी मेहनत , रात रात भर जाग कर पढ़ना , और अन्यान्य किताबों का गहन अध्ययन करना है । वर्ना मैं भी एक अशिक्षित मुर्ख ही होता जो सिर्फ उतना ही पढता जितना कि जाति प्रमाण पत्र दिखाने मात्र से पास हो जाता ।
7. एक अंदर डर बना रहता था कि मैं जितना भी पढूं कम है क्योंकि मेरे पास जाति प्रमाण पत्र नहीं है । परंतु आज मैं उसी डर के द्वारा किये गए गहन अध्ययन से अपनी बौद्धिक क्षमता को उन लोगों से कई गुना ऊपर पाता हूँ जिनके पास सिर्फ और सिर्फ जाति प्रमाण पत्र के अलावा उनका अपना कुछ नहीं ।
8. मुझे गर्व है कि मैंने हर प्रतियोगिता में पूरी पूरी फीस का वहन किया है और उसमें प्रवेश भी अपने शिक्षा और बौद्धिक कुशलता के बल पर पाया है जिसमें मुझे किसी भी जाति प्रमाण पत्र का सहारा नहीं लेना पड़ा । क्योंकि मैं अपनी योग्यता से भलीभाँति परिचित था ।
9. मुझे गर्व है कि जाति प्रमाण पत्र के नाम पर मिलने वाले फीस में छूट और वजीफ़े से मैं किसी भी गलत संगति में नहीं पड़ा और उस फीस छूट और वजीफे की धनराशि का उपयोग मद्यपान (शराब पीना ) , तरह तरह के नशे करना , मांस भक्षण करना , जुआ खेलना , वेश्यावृति करना , लड़की छेड़ना , आपराधिक मामलों में सलिंप्त होना , पढ़ाई से कोसों दूर रहना , इत्यादि गतिविधियों में नहीं पड़ा ।
इसका एकमात्र श्रेय मेरे पास जाति प्रमाण पत्र का न होना है ।
10. मुझे गर्व है कि मेरी नौकरी व कारोबार में मेरा चयन मेरे जाति प्रमाण पत्र के आधार पर नहीं , बल्कि मेरी योग्यता , मेरे अंक पत्र और बोद्धिक कौशलता के आधार पर हुआ है ।
11. मुझे गर्व है कि आज मैं एक सभ्य और बौद्धिक स्तर से परिपूर्ण समाज का एक अंग हूँ । इसमें भी मेरे जाति प्रमाण पत्र का अंशमात्र भी योगदान नहीं है ।
12. मुझे गर्व है की आज मैं एक स्वाभिमानी जीवन व्यतीत कर रहा हूँ और छाती ठोंक कर पुरे आत्म विश्वास के साथ दुनियाँ का सामना कर सकता हूँ की हाँ ! आज मैं जो कुछ भी हूँ मैं अपने योग्यता के बल पर हूँ किसी जाति प्रमाण पत्र के भीख से नहीं ।
13. मुझे गर्व है कि इस समाज में मैंने अपनी पहचान खुद के योग्यता के बल पे बनाया है न कि जाति प्रमाण पत्र द्वारा प्रदत्त भीख के बल पर ।
14. मुझे गर्व है की मैं, वोटों की राजनीति करने वाले और जाति के नाम पर देश और समाज का विखंडन करने वाले सत्ता लोलुप किसी भी राजनेता के भीख और कृपा के बल पर अपना जीवनोपार्जन नहीं कर रहा हूँ । मेरे ऊपर किसी भी लालची और सत्ता लोलुप राजनेताओं और उनकी राजनीतिक पार्टियों का कोई कर्ज या कृपा नहीं है । क्योंकि मेरे पास जाति प्रमाण पत्र है ही नहीं ।
15. मुझे गर्व है की अब तक की सभी सरकारें जाति उत्थान के नाम पर जो 68 वर्षों से लाखो करोङ रूपये से अपने जेब भरती आ रही है और देश को अकूत संपत्ति का चूना लगा रही है , वह खर्च मुझपर नहीं है । और उसका उपयोग देश की उन्नति में व्यय हो रहा है । आज जो भी इंफ्रास्ट्रक्चर

भारत देश में दिखाई पड़ता है उसमें मेरा 50% प्रतिशत से ऊपर का बहुमूल्य योगदान है । परंतु इसमें भी जाति प्रमाण का कोई योगदान नहीं है ।
16. मुझे गर्व है कि कोई भी राजनीतिक पार्टी - मुलायम , मायावती , मोदी , सोनिया , लालू , जीतनराम आदि मुझे लेकर कोई भी वोटों की राजनीति नहीं कर सकते और जनता को बाँट कर अपना जेब नहीं भर सकते । क्योंकि मेरे पास जाति प्रमाण पत्र नहीं है ।
17. मुझे गर्व है कि मुझपे लगने वाला सारा पैसा देश के चहुँ मुखी विकास और अभाव ग्रस्त लोगों पे व्यय होता है । परंतु दुःख होता है की मेरे ही खून पसीने से कमाए हुए पैसे से जाति प्रमाण पत्र रखने वाले लोग ऐश करते हैं और न पढ़ लिखकर अयोग्य बन रहे हैं और आपराधिक गतिविधियों में फंसकर देश को गर्त में गिरा रहे हैं ।
18. मुझे गर्व है कि मुझे कोई कोटे वाला नहीं कहता , न कोई मेरी योग्यता पे शंका करता है और न ही हीनदृष्टि से देखता है । मैं सर उठा कर जीता हूँ । इसका भी एकमात्र कारण मेरे पास जाति प्रमाण पत्र का न होना है ।
19. मुझे गर्व है की जाति के नाम पर मुझे कोई भी राजनीतिक दल महामूर्ख और बेवकूफ नहीं बना सकता । क्योंकि मेरे पास जाति प्रमाण पत्र नहीं है ।
20. मुझे गर्व है कि मैं अपने देश का एक पूर्ण स्वाभिमानी एवं सच्चा भारतीय नागरिक हूँ । इसमें भी जाति प्रमाण पत्र का लेशमात्र भी योगदान नहीं है ।

मुझे गर्व हे कि मै एक क्षत्रिय हूँ व मेरे पूर्वजो द्वारा ही धर्म, इतिहास और संस्कृति की रक्षा की गई है । इसमें उनके और मेरे कोई जाति प्रमाण पत्र काम में नहीं आया ।
लेकिन आज में संकल्प लेता हु की जिन 36 कौमो से इस आरक्षण के कारण दुर्भाव हुवा है उसे प्राणपण से मिटा कर रहूँगा ।।।
भंवर सिंह राठौड़ जूसरी आरक्षण और भर्स्टाचार के खिलाफ सदैव आगे ।।
आप सभी से विनती है की सभी अपना अपना नाम आगे से आगे लिखकर सभी को फॉरवर्ड करते जाए , श्र्ंखला जारी रखे ।
निवेदक - भंवर सिंह राठौड़ जूसरी
1.
2.
3.
4.
5.
6.
7.
...........