Wednesday 1 April 2015

जातीय वैमनस्यता की जड़े

समाज की बहुत सारी जातियों में यह धारणा है की सिर्फ राजपूतों ने ही उनका शोषण किया है सभी का, पर ऐसा बिलकुल नहीं है !!! सभी ने खुद से नीची जाती का शोषण किया है , उदहारण के लिए जाट खुद चमार या भंगियों से छुआछूत करते थे आज भी करते हैं, यहाँ तक की चमार भी भंगी के घर से परहेज करता है और अपने आप को बड़ा मानता है !! लेकिन राजपूत कभी भी ऐसा नहीं करते थे फिर भी जब भी शोषण की बात चलती है और आकर रूकती है तो राजपूत पर ही है !  रही सही कसर राजपूत युवा खुद ही पूरी कर रहे हैं। फेसबुक व WHATSAPP पर शराब, शायरी, झटका और बन्दूको की फूहड़ता भरी तस्वीर डालकर खुद ही अपना दुस्प्रचार कर अन्य जातियों की दलील को मजबूत कर रहे है l वास्तव में क्या व्यवस्था थी उसका उदहारण निचे है l  राजपूतों को चाहिए की इंटरनेट पर हमेशा अपना पॉजिटिव सकारात्मक प्रचार करें, हमारे पूर्वज ज्ञानी और बहादुर थे न की छिछोरे, शराबी या कूल ड्यूड थे, वे फटे पुराने पहन लेते थे लेकिन अपनी जनता या प्रजा को व उनके दुखो को सर आँखों पर रखते थे l ये ज्यादा खराबा तो पिछले 300 वर्षो में अंग्रेजो के आने और उनका अनुसरण करने से हुवा है !!!

हाल में शुरू हुए बेटी बचाओ कार्यक्रम के उद्घाटन के समय अख़बार में एक खबर प्रकाशित हुयी थी, जिसमे कन्या शिशु वध रोकने के लिए राज बीकानेर से महाराजा सर गंगा सिंह जी (राजस्थान के भागीरथ) के समय जारी शाही फरमान का जिक्र था, जिसकी पहली पंक्ति थी "सभी राव-उमराव-ठाकुरों (राज बीकानेर के राजपूत प्रतिनिधि), नगर सेठ-साहूकारों-महाजनों (राज बीकानेर के वैश्य प्रतिनिधि), चौधरीयों (राज बीकानेर के जाट/बिश्नोई प्रतिनिधि) को आदेश दिया जाता है की …… हुकम की तामील करवाएं" . इस से जाहिर होता ही की उस समय भी सभी को क्षेत्र और संख्या के हिसाब से राज कार्य में प्रतिनिधित्व प्राप्त था।

पर आज के गैर राजपूत युवाओं के लिए इतिहास के ज्ञान का श्रोत या तो फिल्मे हैं या फिर उनके सामाजिक ठेकेदारों के द्वारा बताई मनगढंत कहानियां, जातिवादी वैमनस्यता का असल कारण काफी हद्द तक यह है ! क्यों की अपना स्वय का धर्म, इतिहास और संस्कृति को देखते पढ़ते नहीं और दिखने वाली को ही यथार्थ ज्ञान समझ बैठते हैं !!!  मेरा निजी अनुभव है, मैंने अपने गैर राजपूत मित्रों से जब भी पुछा की आपने कभी निजी तौर पर या अपने बुजुर्गों के निजी अनुभव से तथाकथित राजपूत अत्याचार झेला है क्या ??? तो जवाब यही मिला की नहीं, हमारे या हमारे बुजुर्गों के साथ तो कभी ऐसा कुछ नहीं हुआ पर हमने "सुना" है और सुना किससे है तो कोई जवाब नहीं और जवाब है तो पाखंडीयो का व विद्वेसता फेलाने वाली पार्टियों का !!! जाट राजपूत को ही नहीं समाज में रहने वाले हर ‪#‎धार्मिक‬ वर्ग को भी इस सबकी महती आवस्यकता है की वह इन सब पर विचार करे जिससे आपसी वैमनस्यता कम हो सके। क्यों की इन राजनितिक पार्टियो ने भी हमारे समाज में वर्ग संघर्ष के साथ साथ धार्मिक संघर्ष की जड़ो को भी खूब सींच समझ कर द्वेस्ता का एक विशाल वट खड़ा कर दिया है जो हम सबके शास्वत विचार करने और समझता पूर्ण कार्यो के करने से ही वापस गिरना संभव हो सकेगा !!! 
भंवर सिंह राठौड जूसरी

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भवर सिंह राठौड