Saturday 4 April 2015

एक कङवी सच्चाई शादी व बारात की रात की !!

मै जो यह कह रहा हु वह बहुत जगह या यु कहू ज्यादातर बारात और शादीयो में देखने को मिलता ही रहता है, कुछ ही समय पूर्व मेरा भी एक परिचित की पुत्री के विवाह में जाने का अवसर मिला !! वहा बारात भी किन्ही ऊचें रईसो के यहां से आई हुई थी। बारात के स्वागत और मान मनुवार की व्यवस्था एक बड़ी जगह और गाँव के मध्य में ही की गई थी ।
वह जगह भी गाँव के बीचों बीच थी, शाम को जब मै उनके यहा पहुँचा तो देखा वहा उस विशाल चौक में हर प्रकार की खाने पिने की व्यवस्था की गई है, खूब सारी टेबल्स लगी हुई थी बीच में एक बड़ा मंच जेसा भी बना हुवा था। साज सज्जा और वहा की भव्यता देख कर मन प्रसन्नचित हुए बगैर नहीं रह सका।
अब शुरू होती है महफ़िल की तैयारी जो टेबलोँ पर शुरू होने जा रही थी। करीब 25 मिनट के अंतराल के पश्चात देखता हु तो साफे पहने सब लोग  ड्रिंक्स लेने और पिने पिलाने में मशगुल हो गए थे, कईयो के हाथ मे तलवारें भी थी तो कइयो के चेहरे दमक रहे थे, आपस में बाते कम ही कर रहे थे और हंसने मे मशगुल ज्यादा थे !!
मै भी सब से मिल कर बैठा ही था कि अचानक एक हिजड़े जैसा लगने वाला आदमी मंच पर आया। कुछ सस्ते से शेर सुनाने लगा और अनाउंस करने लगा कि मुम्बई से कोई मशहूर नर्तकिया आने वाली है। देखते ही देखते दो बेडौल सी पूरी तरह  लिपी पुती औरते मंच पर आई। और फिर उन्होंने फ़िल्मी गीतो पर कूल्हे मटका मटका कर नाचना शुरू कर दिया। बेटी के ब्याह में ऐसी व्य्वस्थाये देख कर हर कोई दंग रह  सकता है लेकिन इसमें  मुझे तो कोई अचंभा नहीं हुवा !!!
सभी बन्ना लोग शुरुआत में अकड़े से बैठे थे। कुछ सीधे तो कुछ तिरछी निग़ाहों से लटके झटके देख रहे थे। तेज म्यूजिक की आवाज से आसपास के घर वाले छतो पर चढ़ गए और तमाशा देखने लग गए थे। मुझे लगा कम से कम टेंट तो थोड़ा ऊँचा लगवाया होता तो ये पडोसी इस तरह टुकर टुकर नहीं देखते !! एक दो पैग घुट के अंदर जाने के बाद बन्ना लोग थोड़े नरम पड़े। अब उन सबके मुँह से आह और वाह निकलने लग गई थी !!!
कुछ रणबांकुरे मंच तक भी जा पहुंचे थी और नोट लहरा लहरा कर डांसर को अपनी और बुलाने लगे !!
एक बार उठ कर विदा लेने का विचार आया पर फिर सोचा क्यों न आज इन महान पैसो वाले परिवार के महान सांस्कृतिक कार्यक्रम का नजारा कुछ और देर तक लिया जाए !! डांसर बदलती रही, घटिया शायरी चलती रही, दारू की नदियाँ बहती रही, सामने बाप पीता रहा। टेंट की आड़ में बेटा और घर के भीतर अन्य लोग  !!

सभी लोग बखूबी तरह से ढोंगी परम्पराओ का पालन कर रहे थे !!! कुछ ही देर बाद अकड़ी हुई गर्दने लुढ़कने लगी !! कोट के बटन ढीले होने लगे। झूटी शान ओ शोकत के वही घिसे पिटे दरबारी दोहे सुने और सुनाये जाने लगे !! साफे (स्वाभिमान) पहले पहल सर पर दिख रहा था वो हाथ में आ गये थे, फिर टेंट की कुर्सीयो पर, कुछ को जगह नही मिली तो नीचे जमीन पर पहुंच गए  थे !!!
तलवारे भी वापस गाड़ियों में रखवा दी गयी, अगली शादी फंक्शन तक अब उनका कोई काम नही रह गया था शायद !!

अब बड़े बूढे उठ कर जाने लगे और कइयो को उठा कर ले जाया जाने लगा !! अब तक तो हमारी नई रॉयल पीढ़ी अपने पुरे रंग में आ गई थी !! फिर वासना और भोंडेपन की जो मर्यादाये लांधी गई का वर्णन मेरे द्वारा सम्भव नहीँ !! दारू के गिलास के साथ नोट पकड़ पकड़ कर पता नही कौनसी रीती नीती के तहत एक दूसरे को दारू की मनुहारों का अंतहीन सिलसिला भी चल पड़ा था !! फिर निछरावल का ड्रामा चला, वो उस पर लक्ष्मी बरसाता है तो वो बढ़ चढ कर दुसरे पर !!! कुछ लोग तो नोट को एक दूसरे की खोपड़ी पर इस प्रकार घुमा रहे है कि नोट पर बैठे गांधी को भी चक्कर आ गए होंगे शायद !! फोटो खिंचवाने के लिए बीच बीच में रुक भी जाते थे !! दारू पीकर एक दूसरे की खोपड़ी पर नोट घुमाने और डांसर के असिस्टेंट को देने कि क्रिया बहुत बढ़ सी गयी थी, नोट चुगने वालो से नोट बमुस्किल चुगे भी नहीं जा रहे थे ! मुझे ख्याल आया कि इनमे से एक दो को तो जरूर उधार लेकर घर जाना पड़ेगा क्यों की वो बेहिसाब डांसर पर नोटों की बरसात जो कर रहे थे !!!
एक बार तो लगा शायद इन सबके और पूरी जाती के ही अच्छे दिन आ गए है और कल सुबह से ही खोया हुवा राज काज वापस आने वाला या मिलने वाला है !! डी जे की तेज आवाज में ही मै गहरी श्वास ले वहाँ से निकल पड़ा !! पता नही क्यों जो लोग आसपास से देख रहे थे उनसे निगाह मिलाने की हिम्मत भी नही हो रही थी !! रास्ते में चलते चलते सोच रहा था मेरी जाती वाले बाते तो बड़ी बड़ी करती है !! सब अपने आप को वैदिक काल का क्षत्रिय बताने से नहीं चुकते  है !!!
विवाह जेसे वैदिक संस्कार पर घर के आँगन में वेश्याओ द्वारा नांच गान, उनके संग भांड की तरह नाचना, शराब और मांस का परोसा जाना !!! क्या है यह सब ???
दूल्हा दारू पीकर फेरों के लिए यज्ञ में बैठता है !! ये कैसी परम्पराये है जिन का निर्वहन ये सबसे सभ्य समाज आज कर रहा है और बेहयाई से निभाने की झूटी कोशिसो में लगा हुवा है ???

अपने आपको राम और कृष्ण के वँशज मानने वाले और जीवन जी रहे है कबाईलियों जैसा !!!
या यु कहू काहे के बन्ना, काहे के राजपूत, काहे के क्षत्रिय ???? सब झूट है, सब झूट है, सब झूट है !
उल्टियां करते लोग, धूल में पड़े उनके साफे, डिक्की में पड़ी उनकी तलवारें और अन्य शस्त्र शास्त्र !!!

मै आप सब से पूछना चाहुँगा की क्या यही दिन बाकी रह गये थे, जो हमारे पुरखे अपना सर्वस्व लुटा कर हम जेसो के लिए असमय ही काल कवलित हो गए थे ???

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भवर सिंह राठौड